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七绝·晚秋感怀 |
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发表于 2014-11-6 15:38:04
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发表于 2014-11-18 10:48:36
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发表于 2014-11-19 10:07:47
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非非是是乱人魂,子夜流星茫路奔。若水思潮催梦远,云睁醉眼看乾坤。
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发表于 2014-11-19 11:36:20
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发表于 2014-11-19 20:33:00
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发表于 2014-11-19 20:58:34
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发表于 2014-11-20 09:02:10
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非非是是乱人魂,子夜流星茫路奔。若水思潮催梦远,云睁醉眼看乾坤。
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